भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक धर्म बन चुका है। चाहे T20 हो या टेस्ट, लोगों की दीवानगी इस हद तक है कि हर गली में एक "कोहली" और हर स्कूल में एक "धोनी" है। लेकिन जब हम बाकी खेलों की ओर देखते हैं — जैसे हॉकी, कुश्ती, बैडमिंटन, अथलेटिक्स — तो न तो उनके खिलाड़ियों को वैसी पहचान मिलती है, न वैसी कमाई। यह असमानता सिर्फ खिलाड़ियों की आय में ही नहीं, बल्कि स्पॉन्सरशिप, ब्रॉडकास्टिंग, और फैनबेस में भी दिखती है।
यह लेख इस बात की गहराई से जांच करेगा कि कैसे क्रिकेट और अन्य खेलों की कमाई में अंतर बढ़ता जा रहा है, इसके कारण क्या हैं, और इसका समाधान क्या हो सकता है।
🔹 1. क्रिकेट का व्यावसायीकरण
क्रिकेट में IPL जैसी लीग ने इस खेल को एक इंडस्ट्री बना दिया है। खिलाड़ी एक सीजन में करोड़ों रुपये कमाते हैं। विराट कोहली, रोहित शर्मा जैसे सितारे विज्ञापनों से भी करोड़ों की कमाई करते हैं।
🔹 2. बाकी खेलों की स्थिति
हॉकी जो कभी भारत का राष्ट्रीय खेल था, आज दर्शकों और स्पॉन्सर्स से दूर हो चुका है। बैडमिंटन में सिंधु और साइना जैसे खिलाड़ी जरूर उभरे, लेकिन फिर भी उन्हें क्रिकेटर्स जैसी पहचान नहीं मिली। कुश्ती, बॉक्सिंग और एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक जीतने के बाद भी खिलाड़ियों को एक सीमित समय तक ही शोहरत मिलती है।
🔹 3. स्पॉन्सरशिप में भेदभाव
भारत में बड़ी कंपनियाँ अधिकतर क्रिकेट को ही प्रायोजित करती हैं। वजह साफ है – क्रिकेट का viewership बहुत अधिक है। IPL में एक ब्रांड का लोगो लगाना ही करोड़ों का सौदा है, जबकि हॉकी या टेबल टेनिस की लीग में प्रायोजकों की संख्या बहुत कम होती है।
🔹 4. मीडिया कवरेज का रोल
टीवी चैनल्स और न्यूज़ पोर्टल भी केवल क्रिकेट को ज्यादा कवरेज देते हैं। किसी एथलीट ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया हो, तब भी वो खबर किसी क्रिकेट मैच की हेडलाइन के नीचे ही जाती है। इससे अन्य खेलों के फैंस को जुड़ने का मौका नहीं मिल पाता।
🔹 5. स्कूल और कॉलेज स्तर पर अंतर
क्रिकेट को स्कूलों में अच्छे मैदान, कोच और उपकरण मिलते हैं, जबकि अन्य खेलों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। यदि शुरू से ही युवाओं को विकल्प नहीं मिलेगा, तो वे कभी हॉकी या बैडमिंटन में रुचि नहीं लेंगे।
🔹 6. सोशल मीडिया इम्पैक्ट
क्रिकेटर्स की सोशल मीडिया फॉलोइंग लाखों-करोड़ों में होती है, जिससे ब्रांड्स उनसे जुड़ने को लालायित रहते हैं। वहीं बाकी खेलों के खिलाड़ी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद वायरल नहीं हो पाते।
🔹 7. सरकार की नीतियों में असंतुलन
हालांकि सरकार ने Khelo India जैसी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन बजट और संसाधनों का बड़ा हिस्सा अभी भी क्रिकेट को जाता है। हॉकी, कबड्डी जैसे देसी खेल अब भी संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।
🔹 8. खिलाड़ियों की लाइफस्टाइल और ब्रांडिंग
क्रिकेटर्स की ब्रांडिंग बहुत पेशेवर तरीके से होती है — PR टीम, स्टाइलिस्ट, मैनेजर आदि की पूरी टीम होती है। बाकी खेलों के खिलाड़ी अपने सोशल मीडिया खुद चलाते हैं और PR के लिए कोई अलग बजट नहीं होता।
🔹 9. ओलंपिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन
भले ही भारत ने क्रिकेट से ज्यादा ओलंपिक में पहचान पाई हो — जैसे नीरज चोपड़ा का गोल्ड — फिर भी क्रिकेट को ही नंबर 1 स्थान मिला हुआ है। इससे पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय पहचान और घरेलू लोकप्रियता में बड़ा फासला है।
🔹 10. समाधान – क्या हो सकता है?
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सरकार को बजट का समान वितरण करना चाहिए।
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स्कूलों में हर खेल को बढ़ावा दिया जाए।
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मीडिया को balanced coverage देना चाहिए।
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ब्रांड्स को भी क्रिकेट के साथ-साथ दूसरे खेलों को भी प्रायोजित करना चाहिए।
🔚 निष्कर्ष
क्रिकेट की सफलता भारत के लिए गर्व की बात है, लेकिन इसके कारण बाकी खेलों की अनदेखी चिंता का विषय है। हमें एक संतुलन बनाने की जरूरत है जहां हर खेल को उसके प्रतिभा, मेहनत और उपलब्धियों के आधार पर सम्मान और संसाधन मिलें।
यदि हम सच में “Sports Nation” बनना चाहते हैं, तो सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि हर खिलाड़ी, हर खेल को समान अवसर देना होगा। तभी जाकर हम एक स्पोर्टिंग सुपरपावर बन पाएंगे।
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