क्रिकेट आज भारत में सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक बड़ा बिज़नेस मॉडल बन चुका है। IPL के आने के बाद से यह खेल ब्रांड्स और कॉर्पोरेट्स के लिए सोने की खान बन गया है। हर खिलाड़ी की जर्सी, बैट, स्टेडियम और यहां तक कि ओवर के नाम भी अब किसी न किसी ब्रांड से जुड़े होते हैं। Sponsorship का ये असर इतना गहरा हो चुका है कि अब क्रिकेट में भावनाओं से ज़्यादा मार्केटिंग का शोर सुनाई देता है।
1. स्पॉन्सरशिप की शुरुआत और इसका इतिहास:
क्रिकेट में स्पॉन्सरशिप की शुरुआत 1980 के दशक में हुई, जब कपिल देव की अगुवाई में भारत ने 1983 वर्ल्ड कप जीता। इसके बाद से कंपनियों ने क्रिकेट को प्रचार का बड़ा ज़रिया मान लिया। पहले सिर्फ टीवी पर एड आते थे, अब तो डिजिटल, सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम पोस्ट, ट्विटर स्पेस और हर जगह ब्रांड्स क्रिकेट के साथ दिखते हैं।
2. IPL: स्पॉन्सरशिप का मक्का
2008 में IPL की शुरुआत के साथ ही क्रिकेट पूरी तरह से कमर्शियल हो गया। टीमों के नाम, उनकी जर्सी, उनके विज्ञापन – सब पर ब्रांड्स हावी हो गए। टीम की कीमत करोड़ों में होने लगी और खिलाड़ी सिर्फ खेल नहीं रहे थे, बल्कि एक ब्रांड बन चुके थे। IPL के हर ओवर को ब्रांडेड किया गया – जैसे “CRED Powerplay”, “Unacademy Strategic Timeout” आदि।
3. खिलाड़ी या ब्रांड एंबेसडर?
आज के क्रिकेटर सिर्फ खेल से नहीं जाने जाते, बल्कि उनकी ब्रांड वैल्यू से भी। विराट कोहली, एमएस धोनी, रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी करोड़ों में एंडोर्समेंट डील करते हैं। विज्ञापनों में उनका चेहरा दिखाना किसी भी प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ा सकता है। सवाल उठता है – क्या अब खिलाड़ी पहले ब्रांड के लिए काम करते हैं और फिर खेलते हैं?
4. स्टेडियम में भी दिखता है ब्रांडिंग का असर:
पहले जहां स्टेडियम में सिर्फ क्रिकेट और दर्शकों का माहौल होता था, अब वहां हर दीवार, स्कोरबोर्ड, कैमरा एंगल तक ब्रांडिंग से भरे होते हैं। "Pepsi Box Camera", "Dream11 Dugout" जैसी चीज़ें स्टेडियम को एक कमर्शियल शो में बदल देती हैं।
5. डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया का रोल:
YouTube, Instagram, X (Twitter), Facebook जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हर टीम और खिलाड़ी का अलग-अलग स्पॉन्सर्ड कंटेंट होता है। स्टोरी, पोस्ट, लाइक, शेयर – सब कुछ ब्रांड द्वारा प्रायोजित होता है। यहां तक कि खिलाड़ियों के सोशल मीडिया पोस्ट भी ब्रांड के मुताबिक शेड्यूल होते हैं।
6. महिला क्रिकेट में स्पॉन्सरशिप का विस्तार:
महिला क्रिकेट भी अब धीरे-धीरे ब्रांड्स के रडार पर आ चुका है। Women's Premier League (WPL) में भी बड़े ब्रांड्स ने निवेश शुरू कर दिया है। Smriti Mandhana, Harmanpreet Kaur जैसी खिलाड़ियों को अब ब्रांड एंडोर्समेंट मिलने लगे हैं। यह एक सकारात्मक बदलाव है, लेकिन फिर भी पुरुष क्रिकेट के मुकाबले असमानता काफी है।
7. छोटे खेलों पर इसका असर:
क्रिकेट में भारी ब्रांडिंग के कारण बाकी खेलों जैसे हॉकी, कबड्डी, एथलेटिक्स आदि को वह ध्यान नहीं मिल पाता। जब हर ब्रांड सिर्फ क्रिकेट को स्पॉन्सर करता है, तो दूसरे खिलाड़ियों को फंडिंग और पहचान की भारी कमी होती है। यह असंतुलन भारत के खेल जगत में बड़ा मुद्दा है।
8. ब्रांड्स के साथ खिलाड़ियों की छवि जुड़ना:
हर खिलाड़ी को सोच-समझकर ब्रांड चुनना होता है। अगर कोई खिलाड़ी किसी चीनी ब्रांड या सामाजिक रूप से विवादास्पद ब्रांड से जुड़ता है, तो उसका असर सीधे उसकी छवि पर पड़ता है। सोशल मीडिया में फैंस अब ऐसे मामलों में ज़्यादा एक्टिव हो चुके हैं।
9. क्या इससे खेल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है?
ब्रांड डील्स के चलते खिलाड़ियों का ध्यान कभी-कभी खेल से हट सकता है। फोटोज़ शूट, प्रमोशनल ईवेंट्स, सोशल मीडिया एक्टिविटी – इन सबसे थकावट बढ़ती है और प्रदर्शन पर असर पड़ता है। साथ ही, युवा खिलाड़ियों को यह भ्रम हो जाता है कि ब्रांड वैल्यू ज़्यादा ज़रूरी है बनिस्बत परफॉर्मेंस के।
10. दर्शकों के नजरिए में बदलाव:
आज दर्शक क्रिकेट को सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक शो के रूप में देखते हैं। जब हर चीज़ पर ब्रांडिंग हो, तो असली खेल पीछे छूटने लगता है। कई बार ब्रांड इवेंट्स के कारण खेल के शेड्यूल, टाइमिंग और फॉर्मेट में भी बदलाव होते हैं, जो दर्शकों को भ्रमित कर सकता है।
निष्कर्ष:
क्रिकेट में Sponsorship ने खेल को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन अगर संतुलन ना रखा जाए, तो यही ब्रांड्स खेल की आत्मा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खिलाड़ियों, दर्शकों और नीति निर्माताओं को मिलकर यह तय करना होगा कि खेल को व्यवसाय बनाने के साथ-साथ उसकी असली भावना को भी जीवित रखा जाए।
🔗 Related Articles:
📑 Copyright: © 2025 crickethighlight.in | All Rights Reserved.
Social Plugin