क्रिकेट की कमाई बनाम बाकी खेल – क्या असमानता बढ़ रही है?
भूमिका
भारत जैसे देश में क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है। हर गली, हर मोहल्ले में एक क्रिकेटर जरूर मिल जाएगा, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि बाकी खेलों का हाल क्या है? क्या बाकी खिलाड़ी उतनी ही पहचान, पैसा और इज्जत पाते हैं जितनी एक औसत क्रिकेटर को मिलती है? इस लेख में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या क्रिकेट की कमाई ने बाकी खेलों से एक असमान दूरी बना दी है, और क्या यह दूरी लगातार बढ़ती जा रही है?
क्रिकेट की कमाई का परिदृश्य
भारत में क्रिकेट के खिलाड़ियों की कमाई के स्रोत बहुत अधिक हैं। BCCI (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। खिलाड़ियों को सैलरी के साथ-साथ मैच फीस, ब्रांड एंडोर्समेंट, आईपीएल कॉन्ट्रैक्ट और अन्य कई रास्तों से करोड़ों की कमाई होती है।
उदाहरण के लिए, विराट कोहली, रोहित शर्मा और के.एल. राहुल जैसे खिलाड़ियों की कुल कमाई सालाना 100 करोड़ रुपये से ऊपर होती है। सिर्फ BCCI की ग्रेड A+ सैलरी ही 7 करोड़ सालाना है, इसके अलावा हर मैच की फीस अलग है।
अन्य खेलों की हकीकत
अब अगर हम बाकी खेलों की बात करें, जैसे कि हॉकी, कबड्डी, एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, बैडमिंटन, तो इन खेलों में खिलाड़ी भले ही ओलंपिक या विश्वस्तर पर भारत का नाम रोशन करें, लेकिन उन्हें पहचान और पैसा उतना नहीं मिलता।
पीवी सिंधु, नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू जैसे खिलाड़ियों को बड़ी जीत के बाद कुछ समय के लिए जरूर लोकप्रियता मिलती है, लेकिन वो टिकाऊ नहीं होती।
विज्ञापन और ब्रांड वैल्यू का फर्क
क्रिकेटर्स की ब्रांड वैल्यू बहुत ज़्यादा होती है। उन्हें बड़े-बड़े ब्रांड्स का चेहरा बनाया जाता है। चाहे वह मोबाइल कंपनी हो, कपड़ों का ब्रांड, बिस्किट या फिर बीमा कंपनी, हर जगह क्रिकेटर्स छाए रहते हैं।
वहीं, अन्य खेलों के खिलाड़ियों को मुश्किल से ही कोई ब्रांड अप्रोच करता है, और अगर करता भी है, तो बजट बहुत कम होता है।
सरकारी और निजी सहयोग में अंतर
क्रिकेट को मिलने वाला सरकारी और निजी सहयोग दोनों ही अन्य खेलों से कहीं अधिक है। सरकारी स्तर पर खेल मंत्रालय भले ही सभी खेलों को बढ़ावा देने की बात करता है, लेकिन असल में सुविधाएं और बजट क्रिकेट को ही अधिक मिलता है।
निजी कंपनियां भी वही निवेश करना चाहती हैं जहां उन्हें ज्यादा रिटर्न मिले। क्रिकेट में बड़े दर्शक वर्ग और TRP के चलते निवेशक आकर्षित होते हैं।
मीडिया की भूमिका
मीडिया भी क्रिकेट को ही सबसे अधिक महत्व देता है। टीवी चैनलों से लेकर ऑनलाइन पोर्टल तक, हर जगह क्रिकेट का बोलबाला है। न्यूज हेडलाइन, प्राइम टाइम शो और स्पोर्ट्स सेक्शन सभी में क्रिकेट छाया रहता है।
दूसरी ओर, कबड्डी, कुश्ती या टेबल टेनिस जैसे खेलों की खबरें बमुश्किल ही दिखाई जाती हैं। इसका नतीजा ये होता है कि दर्शकों की रुचि भी उन्हीं खेलों तक सीमित रह जाती है जिन्हें मीडिया दिखाता है।
सामाजिक नजरिया
भारतीय समाज में भी क्रिकेट को लेकर दीवानगी का स्तर कुछ और ही है। माता-पिता अपने बच्चों को क्रिकेट सिखाने के लिए कोचिंग भेजते हैं, महंगे किट दिलाते हैं और पूरा सपोर्ट करते हैं। लेकिन अगर बच्चा हॉकी या बॉक्सिंग में करियर बनाना चाहे तो बहुत बार उन्हें सपोर्ट नहीं मिलता।
क्या असमानता बढ़ रही है?
अगर हम पिछले 10-15 सालों में तुलना करें, तो क्रिकेट की लोकप्रियता और कमाई दोनों ही बढ़ी हैं। इसके साथ ही क्रिकेट और अन्य खेलों के बीच का फासला भी बढ़ा है।
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पहले जहां हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता था, आज युवा उसका नाम तक नहीं जानते।
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ओलंपिक में पदक जीतने वाले खिलाड़ी कुछ ही समय में गुमनामी में चले जाते हैं।
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टेबल टेनिस या तीरंदाजी जैसे खेलों को कोई कवर नहीं करता।
समाधान क्या है?
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नीतिगत बदलाव: सरकार को सभी खेलों को बराबरी से बढ़ावा देने की नीति बनानी चाहिए। बजट वितरण में पारदर्शिता होनी चाहिए।
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मीडिया कवरेज: मीडिया को चाहिए कि वह सिर्फ क्रिकेट पर नहीं, अन्य खेलों पर भी ध्यान दे। प्राइम टाइम पर कबड्डी, बॉक्सिंग जैसे खेलों की भी चर्चा हो।
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कॉरपोरेट भागीदारी: कंपनियों को CSR के तहत अन्य खेलों में निवेश करना चाहिए। ब्रांड वैल्यू सिर्फ TRP से नहीं, सामाजिक दायित्व से भी जुड़ी होनी चाहिए।
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स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर: स्कूलों और कॉलेजों में सभी खेलों के लिए बेहतर सुविधाएं होनी चाहिए।
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फिल्म और कंटेंट: जिस तरह ‘83’ और ‘MS Dhoni’ जैसी फिल्मों से क्रिकेट और उसके खिलाड़ियों की कहानी सब तक पहुंची, वैसे ही अन्य खेलों पर भी फिल्में बननी चाहिए।
निष्कर्ष
क्रिकेट निश्चित रूप से भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है, लेकिन यह लोकप्रियता बाकी खेलों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। अगर हमें एक संतुलित स्पोर्टिंग नेशन बनना है तो क्रिकेट के साथ-साथ अन्य खेलों को भी उतना ही प्यार, पैसा और पहचान देना होगा।
वक़्त आ गया है कि हम सिर्फ एक खेल को नहीं, पूरे खेल जगत को सर आंखों पर बिठाएं। तभी भारत सच में एक "खेल महाशक्ति" बन पाएगा।
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