क्रिकेट को लंबे समय तक "जेंटलमेन गेम" यानी सभ्य व्यक्तियों का खेल माना गया। परंतु जैसे-जैसे इस खेल की लोकप्रियता और बाजार बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसमें बाहरी हस्तक्षेप भी बढ़ने लगा। आज क्रिकेट केवल गेंद और बल्ले तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीति, सत्ता, व्यवसाय, जातिवाद, और क्षेत्रीयता जैसे तत्व भी घुलते जा रहे हैं। अब सवाल यह है: क्या क्रिकेट अब भी सिर्फ खेल रह गया है या यह राजनीति की ज़मीन बन चुका है?
1. क्रिकेट बोर्ड्स और राजनीतिक दखल
भारत में BCCI (Board of Control for Cricket in India) सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। लेकिन क्या यह पूरी तरह स्वतंत्र संस्था है? नहीं।
राजनीतिक हस्तक्षेप के उदाहरण:
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कई राज्यों के क्रिकेट एसोसिएशन्स में नेता अध्यक्ष बने हुए हैं।
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BCCI अध्यक्ष रहे हैं शरद पवार, अनुराग ठाकुर, और हाल में जय शाह, जो गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र हैं।
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कई नियुक्तियाँ राजनीतिक संबंधों पर आधारित होती हैं, योग्यता पर नहीं।
इसका असर:
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टीम चयन में पक्षपात की आशंका
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अधिकारियों के फ़ैसलों में पारदर्शिता की कमी
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खेल प्रशासन में गैर-खेल विशेषज्ञों का वर्चस्व
2. चयन में राजनीति
टीम इंडिया के चयन को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। कई बार योग्य खिलाड़ी चयन से बाहर रह जाते हैं जबकि "सिस्टम के नज़दीक" रहने वाले औसत खिलाड़ी मौका पा जाते हैं।
चर्चित उदाहरण:
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अंबाती रायडू को 2019 वर्ल्ड कप से अंतिम समय में बाहर किया गया, जिससे चयन की पारदर्शिता पर सवाल उठे।
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घरेलू क्रिकेट में दमदार प्रदर्शन के बावजूद कई खिलाड़ी वर्षों तक इंतज़ार करते रहते हैं।
3. क्षेत्रीय राजनीति और क्रिकेट
भारतीय क्रिकेट में झारखंड, मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों को हमेशा वरीयता मिलती रही है। वहीं नॉर्थ ईस्ट, बिहार, उत्तराखंड, गोवा जैसे क्षेत्रों से खिलाड़ियों को मौका मिलना बेहद मुश्किल होता है।
कारण:
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बड़े राज्यों के पास बेहतर बुनियादी ढांचा
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राजनीति और क्रिकेट अधिकारियों का गहरा संबंध
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छोटे राज्यों की आवाज़ न सुने जाना
यह असमानता क्रिकेट को राष्ट्रीय एकता से दूर ले जाती है।
4. स्टेडियम और राजनीति
भारत में कई स्टेडियम नेताओं के नाम पर हैं। जैसे:
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नरेंद्र मोदी स्टेडियम (अहमदाबाद)
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अरुण जेटली स्टेडियम (दिल्ली)
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वानखेड़े स्टेडियम के नाम को लेकर भी कई बार विवाद हुआ है
इससे यह सवाल उठता है कि क्या स्टेडियम सिर्फ खेल के प्रतीक हैं या नेताओं की छवि चमकाने का माध्यम?
5. पाकिस्तान से क्रिकेट संबंधों पर राजनीतिक असर
भारत-पाकिस्तान क्रिकेट संबंध पूरी तरह राजनीति पर निर्भर हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय श्रृंखलाएं बंद हैं। केवल ICC टूर्नामेंट में ही भिड़ंत होती है।
असर:
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फैंस को हताशा
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खेल की भावना को ठेस
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खिलाड़ियों का करियर सीमित
हालांकि सुरक्षा कारण भी गंभीर हैं, परंतु क्रिकेट को शांति का माध्यम भी बनाया जा सकता था — जैसा कि पहले किया गया था।
6. क्रिकेट में जातिवाद और पक्षपात
भारत जैसे विविधता वाले देश में क्रिकेट में जातिगत और सामाजिक भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं।
उदाहरण:
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यशपाल शर्मा जैसे खिलाड़ी का चयन बार-बार रोका गया
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कई पूर्व खिलाड़ियों ने कहा है कि ऊँची जातियों को चयन में प्राथमिकता दी जाती है
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गांव और छोटे कस्बों से आने वाले खिलाड़ियों को "सिस्टम" के खिलाफ संघर्ष करना पड़ता है
यह खेल के उस मूल भाव के विरुद्ध है जो योग्यता और मेहनत को प्राथमिकता देता है।
7. राजनीतिक एजेंडा और IPL
IPL अब केवल एक खेल टूर्नामेंट नहीं बल्कि एक 'इवेंट' है — जिसका इस्तेमाल राजनीतिक दल भी अपने फायदे के लिए करते हैं।
कैसे?
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राज्य सरकारें अपने राज्य में फ्रेंचाइज़ी को प्रमोट करती हैं
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नेताओं की उपस्थिति और भाषण
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स्टेडियम उद्घाटन और मैचों का राजनीतिकरण
यह सब दर्शकों को सिर्फ "मनोरंजन" देने के बजाय उन्हें एक विचारधारा की ओर मोड़ने की कोशिश करता है।
8. मीडिया और राजनीतिक प्रभाव
आज मीडिया भी क्रिकेट को राजनीतिक एजेंडे के अनुसार दिखाता है। कुछ खिलाड़ी मीडिया के फेवरिट बनते हैं और कुछ को नजरअंदाज़ कर दिया जाता है।
उदाहरण:
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एक खिलाड़ी के ट्वीट पर मीडिया बवाल कर देती है
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किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन को राजनीति से जोड़ा जाता है
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चैनल्स टीम चयन पर बहस को राष्ट्रवाद और राजनीति से जोड़ देते हैं
इसका सीधा असर खिलाड़ियों की मानसिक स्थिति और फैंस की धारणा पर होता है।
9. खिलाड़ियों की राजनीतिक एंट्री
क्रिकेटर रिटायरमेंट के बाद राजनीति में कदम रखते हैं। कुछ सफल हुए, कुछ केवल चेहरा बनकर रह गए।
प्रमुख नाम:
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गौतम गंभीर – BJP सांसद
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नवजोत सिंह सिद्धू – कांग्रेस नेता
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कीर्ति आज़ाद – पूर्व क्रिकेटर और सांसद
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मोहम्मद अजहरुद्दीन – सांसद और क्रिकेट एसोसिएशन अध्यक्ष
हालांकि राजनीति में आना गलत नहीं है, लेकिन कई बार उनके क्रिकेटिंग करियर का राजनीतिक उपयोग होता है — जो खेल की मर्यादा को चोट पहुंचाता है।
10. निष्कर्ष: खेल या राजनीति — दिशा तय करनी होगी
क्रिकेट और राजनीति का मेल पूरी तरह गलत नहीं है, लेकिन जब राजनीति खेल को निगलने लगे तो यह चिंता का विषय बन जाता है।
समाधान:
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क्रिकेट बोर्ड्स की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो
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चयन में पारदर्शिता आए
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क्षेत्रीय असंतुलन को दूर किया जाए
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खिलाड़ियों को राजनीति से दूर रखा जाए (कम से कम जब तक वे सक्रिय खिलाड़ी हों)
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फैंस भी भावनाओं में बहने की बजाय निष्पक्ष सोच अपनाएं
क्रिकेट को अगर एक निष्पक्ष और प्रेरणादायक खेल बनाए रखना है, तो राजनीति की सीमा तय करनी होगी।
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