क्रिकेट और विज्ञापन: क्या अब खिलाड़ी सिर्फ ब्रांड बनकर रह गए हैं?

विराट कोहली और एमएस धोनी ब्रांड ऐडवर्टाइजमेंट में


 क्रिकेट अब केवल एक खेल नहीं रहा, बल्कि यह एक ग्लोबल बिजनेस बन चुका है। मैदान पर रन बनाना और विकेट लेना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी अब टीवी कमर्शियल्स, ब्रांड एंडोर्समेंट और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना भी हो गया है। एक समय था जब क्रिकेटर्स सिर्फ देश के लिए खेलते थे, लेकिन आज वे खुद एक 'ब्रांड' बन चुके हैं। अब सवाल यह है — क्या खिलाड़ी अब पहले ‘सेलिब्रिटी’ हैं और बाद में ‘खिलाड़ी’?


1. ब्रांड वैल्यू का नया गेम

भारत में क्रिकेट का बाजार सबसे बड़ा है। यहां खिलाड़ी जितना अच्छा खेलते हैं, उतना ही ज़्यादा उनका ब्रांड मूल्य बढ़ता है। विराट कोहली, एमएस धोनी, रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी केवल बैट से रन नहीं बनाते, बल्कि हर साल करोड़ों की कमाई ब्रांड एंडोर्समेंट से करते हैं।

कुछ आंकड़े:

  • विराट कोहली की ब्रांड वैल्यू (2024): ₹1000+ करोड़

  • धोनी की ब्रांड डील्स: 25+ कंपनियों के साथ करार

  • हार्दिक पांड्या, केएल राहुल, शुभमन गिल — नए ब्रांड फेस बन चुके हैं

इससे यह साफ हो जाता है कि अब खेल केवल मैदान तक सीमित नहीं रहा।


2. ऐड शूट बनाम नेट प्रैक्टिस

आजकल खिलाड़ी मैदान से ज्यादा शूटिंग सेट पर दिखाई देते हैं। ब्रांड डील्स की डिमांड के चलते खिलाड़ियों के शेड्यूल में ऐड शूट की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है।

इस बदलाव का असर:

  • थकान और मानसिक दबाव

  • मैच से पहले कम प्रैक्टिस

  • दर्शकों की उम्मीदों पर असर

कुछ लोगों का मानना है कि ऐड से कमाई करना गलत नहीं, लेकिन जब यह खेल को प्रभावित करे, तो संतुलन बनाना जरूरी हो जाता है।


3. सोशल मीडिया: नया ब्रांडिंग प्लेटफॉर्म

इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब ने खिलाड़ियों को सीधा जनता से जुड़ने का माध्यम दे दिया है। अब हर खिलाड़ी अपने पोस्ट्स से लाखों कमा रहा है।

उदाहरण:

  • विराट कोहली की एक इंस्टा पोस्ट की कीमत ₹1.5 करोड़ से अधिक

  • स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर भी ब्रांड के लिए हॉट चॉइस बन चुकी हैं

  • क्रिकेटर अब खुद अपने ब्रांड लॉन्च कर रहे हैं जैसे "One8" (विराट कोहली)

सोशल मीडिया ब्रांड वैल्यू को और तेज़ी से बढ़ाने का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है।

क्रिकेटर इंस्टाग्राम पर ब्रांड प्रमोशन करते हुए



4. विज्ञापन और क्रिकेट: एक पुराना रिश्ता

क्रिकेट और ऐड का रिश्ता नया नहीं है। कपिल देव के ज़माने से लेकर सचिन तेंदुलकर और गांगुली तक, विज्ञापन हमेशा क्रिकेट का हिस्सा रहा है।

लेकिन अंतर यह है कि:

  • तब खिलाड़ी मैदान के परफॉर्मेंस के बाद ऐड करते थे

  • अब ऐड पहले, खेल बाद में दिखाई देता है

  • खिलाड़ियों की ब्रांड इमेज अब खेल से ज़्यादा उनकी लाइफस्टाइल पर आधारित होती जा रही है


5. महिला क्रिकेटर्स की ब्रांड वैल्यू

जहां पहले केवल पुरुष क्रिकेटर ही ऐड में दिखते थे, अब महिला क्रिकेटर भी ब्रांड का चेहरा बन रही हैं।

उदाहरण:

  • स्मृति मंधाना – Hero, Nike, Red Bull

  • हरमनप्रीत कौर – Boost, CEAT

  • शेफाली वर्मा – emerging youth brand icon

यह एक सकारात्मक संकेत है कि महिला क्रिकेट अब सिर्फ खेल नहीं, एक प्रभावशाली बाज़ार बन रहा है।


6. क्या ब्रांडिंग खेल को पीछे छोड़ रही है?

एक बड़ी बहस यह भी है कि क्या ब्रांडिंग की दौड़ में खिलाड़ी खेल को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं?
कई बार देखा गया है कि खिलाड़ी ब्रांड इवेंट्स में जाते हैं लेकिन मैच से पहले नेट प्रैक्टिस छोड़ देते हैं।

इससे जुड़ी समस्याएं:

  • प्रदर्शन में गिरावट

  • फिटनेस पर असर

  • फैंस में नाराज़गी

BCCI और दूसरे बोर्ड्स को चाहिए कि वे खिलाड़ियों के ब्रांड एंगेजमेंट को एक लिमिट में रखें ताकि उनका फोकस खेल पर बना रहे।


7. विज्ञापन बनाम क्रिकेट की नैतिकता

कई बार खिलाड़ी ऐसे प्रोडक्ट्स का ऐड करते हैं जो स्वास्थ्य या समाज के लिए अच्छे नहीं माने जाते – जैसे गुटखा, शराब की सरोगेट एड्स, सट्टेबाज़ी ऐप्स आदि।

इस पर सवाल उठते हैं:

  • क्या एक राष्ट्रीय खिलाड़ी को ऐसे प्रोडक्ट का प्रचार करना चाहिए?

  • क्या सिर्फ पैसे के लिए खिलाड़ी समाज को गुमराह कर सकते हैं?

इसपर बोर्ड्स को भी सख्ती दिखानी चाहिए, और खिलाड़ियों को खुद भी आत्मचिंतन करना चाहिए।

क्रिकेटर दो विपरीत ब्रांड्स का प्रचार करते हुए




8. क्रिकेट बोर्ड्स और विज्ञापन की पॉलिसी

BCCI, ICC और अन्य बोर्ड्स अब खिलाड़ियों के ब्रांड डील्स पर नज़र रखने लगे हैं। कई बोर्ड्स ने गाइडलाइंस जारी की हैं कि:

  • कौनसे प्रोडक्ट्स के ऐड नहीं करने चाहिए

  • मैच के कितने दिन पहले ऐड शूट नहीं हो सकते

  • कितनी ब्रांड डील्स साल भर में की जा सकती हैं

ये बदलाव ज़रूरी हैं ताकि खेल और ब्रांडिंग के बीच संतुलन बना रहे।


9. ब्रांड बनने का दबाव

आज के युवा खिलाड़ियों पर न सिर्फ अच्छे खेलने का, बल्कि जल्दी 'ब्रांड' बनने का दबाव होता है। हर खिलाड़ी चाहता है कि उसे विराट जैसा सोशल मीडिया फैनबेस और धोनी जैसी ब्रांड डील्स मिलें।

इसका असर:

  • आत्मविश्वास की जगह ईर्ष्या

  • जल्दबाज़ी में प्रदर्शन गिरता है

  • ज़रूरत से ज़्यादा सोशल मीडिया एक्टिविटी


10. निष्कर्ष: संतुलन ही समाधान है

क्रिकेट और विज्ञापन दोनों ज़रूरी हैं। खिलाड़ी मेहनत करते हैं, उन्हें कमाई का अधिकार भी है। लेकिन जब पैसा खेल से बड़ा हो जाए, तब मूल भावना खोने लगती है।

क्या करना चाहिए?

  • खिलाड़ी ब्रांड और खेल के बीच संतुलन बनाए रखें

  • बोर्ड्स स्पष्ट गाइडलाइन बनाएं

  • दर्शक भी केवल ग्लैमर नहीं, खेल को तवज्जो दें

  • ब्रांड्स भी समाज और खेल भावना का सम्मान करें

आज जरूरत है एक ऐसे क्रिकेट की, जिसमें खिलाड़ी न केवल ब्रांड हो, बल्कि असली प्रेरणा भी बने।

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