क्रिकेट को "जेंटलमैन गेम" कहा जाता है, लेकिन इस खेल में विवादों की कोई कमी नहीं रही है। जब भी मैदान पर खिलाड़ी, अंपायर या तकनीक के फैसलों को लेकर मतभेद सामने आते हैं, तो यह खेल सुर्खियों में आ जाता है। कभी अंपायरिंग की गलतियों पर सवाल उठते हैं, तो कभी खिलाड़ी आपस में भिड़ जाते हैं। वहीं सोशल मीडिया के दौर में विवाद मैदान से बाहर भी फैल जाते हैं। भारत-पाकिस्तान मैच तो अक्सर सिर्फ खेल नहीं, बल्कि दोनों देशों की प्रतिष्ठा का सवाल बन जाते हैं, जहाँ छोटी सी घटना भी बड़ा विवाद खड़ा कर देती है।
क्रिकेट में तकनीक आने के बाद भी गलत फैसलों और विवादों का सिलसिला रुका नहीं है। बॉल टैंपरिंग, मैच फिक्सिंग और डीआरएस जैसे मामलों ने खेल की छवि को बार-बार धक्का पहुँचाया है। भीड़ का हस्तक्षेप, सुरक्षा संबंधी परेशानियाँ और खिलाड़ियों का गुस्सा भी कई बार खेल को प्रभावित कर चुका है।
इस लेख में हम क्रिकेट इतिहास के 10 बड़े विवादों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इसमें हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे ये विवाद खेल की दिशा बदलते हैं और क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन जाते हैं।
1. अंपायरिंग की गलतियां और उनका असर
क्रिकेट के इतिहास में कई बार अंपायरिंग की गलतियों ने मैच का रुख पूरी तरह बदल दिया है। 90 के दशक में जब तकनीक इतनी विकसित नहीं थी, तब खिलाड़ी और दर्शक अक्सर अंपायरों के फैसलों पर सवाल उठाते थे। गलत LBW, कैच या रन-आउट के निर्णय ने टीमों को हार-जीत की कगार पर ला खड़ा किया। अंपायर की छोटी सी गलती कभी-कभी पूरे टूर्नामेंट पर असर डाल सकती है। खासकर वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंटों में, जहां हर निर्णय का महत्व बहुत ज्यादा होता है। कई बार खिलाड़ियों की नाराज़गी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने मैदान पर अंपायर से बहस की और माहौल गरमा गया। अंपायरिंग की गलतियों ने यह सवाल उठाया कि क्या खेल की साख इंसानी नज़र पर छोड़ दी जानी चाहिए, या फिर तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल होना चाहिए। यही कारण है कि बाद में डीआरएस जैसी तकनीक की शुरुआत हुई, ताकि विवाद कम हो और खेल निष्पक्ष बने।
2. डीआरएस (Decision Review System) विवाद
डीआरएस को खेल में पारदर्शिता लाने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन यह खुद एक विवाद का कारण बन गया। कई बार हॉटस्पॉट, स्निकमीटर और बॉल ट्रैकिंग में असमानता देखने को मिलती है। बल्लेबाज को कभी-कभी साफ नॉट आउट दिखने के बावजूद आउट कर दिया जाता है, जबकि कई बार ग़लत अपील भी बच जाती है। भारत ने शुरुआती दौर में डीआरएस को अपनाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि सचिन तेंदुलकर और धोनी जैसे खिलाड़ियों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। समय के साथ हालांकि इसे स्वीकार किया गया, लेकिन आज भी हर सीरीज़ में डीआरएस विवाद देखने को मिलते हैं। खासकर तब जब अंपायर का "अंपायर कॉल" काम करता है। यह स्थिति खिलाड़ियों और दर्शकों को असमंजस में डाल देती है कि तकनीक होने के बावजूद 100% निष्पक्षता क्यों नहीं मिल रही।
3. बॉल टैंपरिंग विवाद
बॉल टैंपरिंग क्रिकेट का सबसे चर्चित विवाद रहा है। खिलाड़ी गेंद की चमक या उसके सीम को जानबूझकर बदलने की कोशिश करते हैं ताकि गेंद स्विंग ज्यादा करे और बल्लेबाज को धोखा दिया जा सके। साल 2018 में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर पर सैंडपेपर से गेंद घिसने का आरोप साबित हुआ था, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। इससे पहले शाहिद अफरीदी और इंग्लैंड के खिलाड़ियों पर भी बॉल टैंपरिंग के आरोप लगे। इस विवाद ने क्रिकेट की ईमानदारी पर बड़ा सवाल खड़ा किया। आईसीसी ने नियम सख्त किए, लेकिन आज भी कई खिलाड़ी मैदान पर गेंद के साथ छेड़छाड़ करते पकड़े जाते हैं। बॉल टैंपरिंग ने हमेशा खेल की साख और खिलाड़ियों की ईमानदारी को कटघरे में खड़ा किया है।
4. खिलाड़ी बनाम खिलाड़ी ऑन-फील्ड झगड़े
मैदान पर खिलाड़ियों के बीच झगड़े क्रिकेट में हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के आक्रामक खिलाड़ी स्लेजिंग के लिए मशहूर रहे हैं। हरभजन सिंह और एंड्रयू साइमंड्स का "मंकीगेट" विवाद क्रिकेट के सबसे बड़े झगड़ों में गिना जाता है। विराट कोहली और जेम्स एंडरसन के बीच हुए टकराव ने भी खूब चर्चा बटोरी। दर्शक भी इन झगड़ों का मज़ा लेते हैं, लेकिन कई बार यह हद से आगे बढ़ जाता है और खेल की मर्यादा टूट जाती है। आईसीसी ने ऐसे मामलों में जुर्माना और मैच बैन तक लगाया है। हालांकि प्रतिस्पर्धी खेल में तनाव होना सामान्य है, लेकिन जब खिलाड़ी व्यक्तिगत टिप्पणी करते हैं तो विवाद बढ़ जाता है। इस तरह के झगड़े यह दिखाते हैं कि क्रिकेट सिर्फ "जेंटलमैन्स गेम" नहीं रहा, बल्कि इसमें भावनाओं और आक्रामकता का बड़ा हिस्सा जुड़ चुका है।
5. मैच फिक्सिंग और सट्टेबाज़ी विवाद
क्रिकेट में सबसे काला धब्बा मैच फिक्सिंग रहा है। 2000 में हंसि क्रोन्ये, मोहम्मद अजहरुद्दीन, अजय जडेजा जैसे बड़े नाम फिक्सिंग में लिप्त पाए गए। इसके बाद 2010 में पाकिस्तान के तीन खिलाड़ियों — सलमान बट्ट, मोहम्मद आसिफ और आमिर — को इंग्लैंड दौरे पर स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में बैन किया गया। आईपीएल जैसे टूर्नामेंट भी इससे अछूते नहीं रहे, जहां 2013 में राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाड़ियों और मैनेजमेंट पर आरोप लगे। फिक्सिंग विवाद ने दर्शकों का भरोसा तोड़ा और क्रिकेट की साख पर गहरा दाग लगाया। आईसीसी और बीसीसीआई ने एंटी-करप्शन यूनिट बनाई, लेकिन हर बार इस तरह के मामले सामने आकर खेल की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं।
6. कैप्टन और अंपायर की भिड़ंत
मैच के दौरान कई बार कप्तान और अंपायर के बीच सीधा टकराव देखने को मिला है। जब कोई फैसला टीम के खिलाफ जाता है, तो कप्तान अक्सर अंपायर से बहस करने लगते हैं। एमएस धोनी ने एक बार आईपीएल में मैदान पर अंपायर के पास जाकर सीधे सवाल उठाए थे, जिससे विवाद हुआ। सौरव गांगुली और रिकी पोंटिंग जैसे कप्तान भी अपने गुस्से और तर्क-वितर्क के लिए जाने जाते हैं। इस तरह की भिड़ंतें यह दर्शाती हैं कि कप्तान पर टीम के प्रदर्शन का दबाव इतना ज्यादा होता है कि वह अंपायर को खुलकर चुनौती देता है। हालांकि आईसीसी ने ऐसे व्यवहार को "कोड ऑफ कंडक्ट" के खिलाफ माना है, लेकिन क्रिकेट इतिहास गवाह है कि कप्तान और अंपायर की भिड़ंत हमेशा सुर्खियां बटोरती हैं।
7. भीड़ का हस्तक्षेप और सुरक्षा विवाद
कई बार दर्शकों की हरकतों ने मैच को प्रभावित किया है। 1996 वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल (भारत बनाम श्रीलंका, कोलकाता) इसका बड़ा उदाहरण है। जब भारत हार की कगार पर था, तो दर्शकों ने बोतलें फेंकी और आग लगाई, जिससे मैच बीच में रोकना पड़ा। इसी तरह पाकिस्तान, श्रीलंका और इंग्लैंड में भीड़ के हंगामों के कारण खिलाड़ियों की सुरक्षा पर सवाल उठे। 2009 में श्रीलंकाई टीम पर लाहौर में आतंकी हमला भी सुरक्षा से जुड़े सबसे बड़े विवादों में से एक रहा। इसके बाद पाकिस्तान में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट लंबे समय तक बंद रहा। दर्शकों और सुरक्षा से जुड़े विवाद हमेशा यह याद दिलाते हैं कि क्रिकेट सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि दर्शक और माहौल पर भी निर्भर करता है।
8. तकनीक का इस्तेमाल और उसकी सीमाएं
क्रिकेट में तकनीक के आने से खेल तेज़ और पारदर्शी हुआ, लेकिन इसकी सीमाओं ने विवाद भी खड़े किए। हॉक-आई, स्निकमीटर और अल्ट्राएज जैसी तकनीकें हर बार सटीक नहीं होतीं। कई बार गेंद का हल्का किनारा तकनीक पकड़ नहीं पाती और बल्लेबाज नॉट आउट रह जाता है। इसी तरह, "अंपायर कॉल" ने हमेशा दर्शकों को भ्रमित किया है। तकनीक के सहारे भी कई गलत फैसले दिए गए, जिससे खिलाड़ियों ने इस पर सवाल उठाए। हालांकि तकनीक ने खेल को और दिलचस्प बनाया है, लेकिन इसकी सीमाओं के कारण विवाद थमते नहीं। यही कारण है कि आज भी कई दिग्गज मानते हैं कि इंसानी नज़र और तकनीक दोनों का संतुलन ही क्रिकेट को निष्पक्ष बना सकता है।
9. सोशल मीडिया पर खिलाड़ियों के विवाद
सोशल मीडिया ने खिलाड़ियों को सीधे प्रशंसकों से जोड़ दिया है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आए। कई बार खिलाड़ी गुस्से में ट्वीट या पोस्ट कर देते हैं, जिससे विवाद खड़ा हो जाता है। हार्दिक पांड्या और केएल राहुल का "कॉफी विद करण" शो विवाद भी सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में रहा। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने भी कई बार ट्विटर पर एक-दूसरे पर तंज कसे हैं। दर्शक और मीडिया इन्हें तुरंत वायरल कर देते हैं, जिससे खिलाड़ियों को माफी तक मांगनी पड़ती है। सोशल मीडिया विवाद दिखाते हैं कि अब क्रिकेट सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि डिजिटल दुनिया में भी खिलाड़ी हर वक्त चर्चा का हिस्सा बने रहते हैं।
10. भारत-पाकिस्तान मैचों में हुए चर्चित विवाद
भारत-पाकिस्तान मैचों को "जंग से कम नहीं" कहा जाता है, और यही कारण है कि इन मुकाबलों में अक्सर विवाद देखने को मिलते हैं। 1996 वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल, 2003 वर्ल्ड कप और 2011 वर्ल्ड कप जैसे मैचों में दोनों टीमों के खिलाड़ियों के बीच जबरदस्त तनाव देखने को मिला। 2007 के टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में मिस्बाह-उल-हक़ का कैच और धोनी की कप्तानी ने चर्चा बटोरी। कई बार खिलाड़ियों के बीच ऑन-फील्ड टकराव ने माहौल और भी गर्म कर दिया। दर्शकों की भावनाएं इतनी प्रबल होती हैं कि छोटी-सी घटना भी बड़े विवाद में बदल जाती है। भारत-पाक मुकाबले सिर्फ खेल नहीं, बल्कि राजनीति, भावनाओं और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन जाते हैं। यही कारण है कि इन मैचों के विवाद इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं।
🏆 निष्कर्ष
क्रिकेट को सज्जनों का खेल कहा जाता है, लेकिन इसकी लंबी यात्रा में कई ऐसे विवाद सामने आए जिन्होंने खेल की साख को गहराई से प्रभावित किया। बॉडीलाइन सीरीज़ से लेकर आधुनिक दौर के “सैंडपेपरगेट” तक, हर विवाद ने खेल के नियमों, खिलाड़ियों के आचरण और दर्शकों के विश्वास पर सवाल खड़े किए।
जहाँ मैच फिक्सिंग और बॉल टैम्परिंग जैसी घटनाओं ने क्रिकेट की ईमानदारी को चुनौती दी, वहीं “मंकीगेट” जैसे विवादों ने खिलाड़ियों के बीच नस्लभेद और आपसी संबंधों पर बहस छेड़ दी। अंपायरिंग की गलतियाँ और तकनीकी विवाद (जैसे DRS का उपयोग) यह दिखाते हैं कि खेल में तकनीक और मानवीय त्रुटियाँ किस तरह से टकराती हैं।
हालांकि इन विवादों ने क्रिकेट की छवि को धक्का पहुँचाया, परंतु साथ ही इनसे सीख लेकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने नए नियम, कड़े अनुशासनात्मक प्रावधान और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया।
आज के दौर में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवसाय और मनोरंजन का साधन भी है। इसलिए यह और भी ज़रूरी है कि विवादों को कम किया जाए और खेल की पवित्रता को बनाए रखा जाए। अंततः यही विवाद हमें याद दिलाते हैं कि क्रिकेट सिर्फ रन और विकेट का खेल नहीं, बल्कि नैतिकता और विश्वास का भी प्रतीक है।
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